नवरात्रों की अष्टमी को अर्धरात्रि से नवमी व दशमी को प्रात: 10 बजे तक ही होते है चमत्कारी नारियल के दर्शन।

रक्तांचल पर्वत की तलहटी में स्थित ज्वाला माता के चमत्कारी नारियल (Miraculous Coconut) के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
करीब 1081 वर्ष पूर्व बरथल गांव में माताजी की स्थापना।
निवाई (न्यूज़ अपना टोंक) – रक्तांचल पर्वत की तलहटी में स्थित ज्वाला माता के चमत्कारी नारियल (Miraculous Coconut) के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। नारियल की विशेषता यह है कि नारियल को अनाज के ढेर में दबा दिया जाता है। प्रतिदिन श्रद्धालु नारियल पर श्रद्धा से अनाज चढाते है और नारियल स्वत: ही ढेर से ऊपर आ जाता है। विक्रम संवत 999 ईस्वी में करीब 1081 वर्ष पूर्व बरथल गांव में माताजी की स्थापना हुई थी। यूं तो ज्वाला माता के मंदिर में वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। लेकिन शारदीय नवरात्रों में सप्तमी से विजयदशमी तक विशेष पूजा अर्चना प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। वहीं प्रत्येक माह की अष्टमी को ज्वाला माता की पूजा अर्चना के लिए अपना अलग ही महत्व है।
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शारदीय नवरात्रों में सप्तमी को खीर, अष्टमी को मालपुआ, नवमी को चूरमा एवं विजयदशमी को विशेष प्रकार का भोग लगाने की प्राचीनकाल से आज तक परंपरा चली आ रही है। वैसे ही चैत्र नवरात्रों में सप्तमी, अष्टमी और नवमी का विशेष महत्व माना गया है। माता के भक्त निर्भयराम ने बताया कि प्राचीन ग्रंथों के अनुसार ज्वाला माता के मूर्ति की पूजा नहीं होती है। यहां चमत्कारी नारियल के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं के दुख दर्द दूर होते हैं। ज्वाला माता के चमत्कारी नारियल के दर्शन नवरात्रों की अष्टमी को अर्धरात्रि से नवमी व दशमी को प्रात: 10 बजे तक ही दर्शन होते हैं। बाकी दिनों माता की अगर बबूत लगाने मात्र से ही दुखियों के दुख दूर होते हैं और श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
झिलाय दरबार की कुचेष्टा- प्राचीनकाल में झिलाय के महाराजा ने ज्वाला माता के चमत्कारी नारियल का चमत्कार साक्षात देखने की कुचेष्टा की थी। इसका उन्हें भारी नुकसान हुआ और उन्होंने उसी समय मातारानी से माफी मांग कर ज्वाला माता का पक्का मंदिर बनवाया था।
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