बारां की बेटी श्रीमति सारिका जैन कोटा में ससुर जी की कर रही सेवा

बारां की बेटी श्रीमति सारिका जैन को कोटा में ससुर जी की सेवा करने का मोका मिल रहा है :
बारां – निवाई
विमल जौंला , संवाददाता |
निवाई (अपना टोंक ) :
भरत के भारत में पूर्व की भारतीय संस्कृतिं की पूजा होती है। अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाने वाली हमारी संस्कृति ही सच्ची भारतीय संस्कृति है । (Sarika Jain)
मनुस्मृति ग्रंथ में कहा गया है कि
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।
जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कार्य निष्फल हो जाते है। आज मानव है परंतु मानवता नजर नही आती इंसान है परंतु इंसानियता नजर नही आती। कलयुग के
ऐसे समय में कुछ लोग आज भी सतयुग जैसी सोच रखते है। बचपन में दिए सद संस्कार पचपन की दहलीज पार करने के बाद भी ज्यो के त्यों बने रहते है ये सार्वभोमिक सत्य है इसको नकारा नहीं जा सकता है। वर्तमान समय में आज के माता पिता अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देकर उनको विदेश भेज देते है बाद में वे ही बच्चे अपने माँं बाप को स्टूपिड समझते हैं बाद में वो उनके माता-पिता को वृद्ध आश्रम में छोड़ देते हैं । जीवन में एक पल और कल का भी भरोसा नहीं है जीवन पानी की बूंद की तरह है । कब क्या हो जाए कुछ नही कह सकते ।
श्री कैलाश चंद जैन श्रीमती कोशल्या देवी जैन बारां की सुयोग्य संस्कारवान धर्मनिष्ठ सुपुत्री श्रीमती सारिका जैन के ससुर विमल चंद जैन को ब्रेन पैरालाइसिस अटैक दिनांक 16 अगस्त 2022 को हो गया। विगत नो माह से श्रीमती सारिका जैन रात दिन उनकी सेवा में लग रही है। प्रात काल सायंकाल णमोकार महामंत्र, मेरी भावना, वैराग्य भावना, भक्तामर पाठ सुनाती है। उनको उठाना, बैठना, लेटाना, नहलाना, कपड़े एवम डायपर बदलना खाना खिलाना यही नित्य क्रम प्रतिदिन चलाता हैं। दो से तीन बजे स्वयं का खाना हो पाता है। पूरी लगन श्रद्धा और समर्पण के साथ अपने ससुर को पिताजी की भाती मानकर सेवा की जा रही है । जब श्रीमती सारिका जैन दो या तीन दिन के लिए कोटा से बाहर चली जाती है तो उनके ससुर कुछ भी नहीं लेते यहां तक की पानी भी नहीं लेते। उदास चहरा बना लेते है।इस इस कार्य में सेवा कार्य में श्रीमती सारिका जैन के पति पारस जैन पार्श्वमणि का भी पूरा अविस्मरणीय सहयोग रहता है।
विदित हो कि श्री विमल चंद जैन देव शास्त्र गुरु के परम भक्त व्यवहार कुशल प्रभाव शाली व्यक्तित्व के धनी है ।परम पूज्य भारत गौरव गणनी प्रमुख आर्यिका रत्न विज्ञा श्री माता जी ससंघ घर पर आकर विमल चंद जैन को धर्मोपदेश दिया। जैसे ही विमल चंद जी जैन ने माता जी को देखा उनकी आंखे भर आई माता जी ने कहा पिच्छिका लोगे।तो उन्होंने अपना सिर उठा लिया मानो माता जी की गोदी ने सिर रखना चाहते हो। माता जी ने प्रसन्नचित मुद्रा में अपना मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। विदित हो कि श्री विमल चंद जैन के सुयोग्य सुपुत्र पारस जैन पार्श्वमणि विगत 31 वर्षों से जैन पत्रकारिता के क्षेत्र में निस्वार्थ भाव से उल्लेखनीय योगदान देने वाले जैन युवा पत्रकार गौरव, जैन समाज की अनमोल मणि, सर्वश्रेष्ठ संवाददाता अवार्ड विजेता,सफल मंच संचालक, भावपूर्ण भजनों की प्रस्तुति देते हैं। श्री विमल चंद जैन ना बोल पा रहे है ना बैठ पाते है एक हाथ और एक पैर काम नहीं कर रहा है। अभी तक विमल चंद जैन की जो सेवा की गई है उसकी बदौलत ही वो अभी तक जीवित है। एक स्नेह भेट में श्रीमती सारिका जैन और पारस जैन पार्श्वमणि ने अपने हदर्योगार व्यक्त करते हुए कहा कि
जिस तरह बचपन में उन्होंने हमारा ध्यान रखा ऐसे ही आज हम उनका ध्यान रख रहे है जीवन की अंतिम सांस तक रखेगे। मुझे ये सब देख कर वो गीत भजन याद आ गया । हर बार को तुम भूलो मगर मां बाप को मत भूलना उपकार उनके लाखो है इस बात को मत भूलना। यह तो सच है कि भगवान है इस धरती पर अवतार हैं ले के मां-बाप का वो जन्म इस धरती पे भगवान है।