स्वयं सहायता समूह की महिलाओ ने अपने हुनर से बनाये दीये।

गुलाबी नगरी में स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) की महिलाओ ने अपने हुनर से बनाये दीये,विदेशों में रोशन होंगे दीये।
जयपुर (न्यूज़ अपना टोंक) – गुलाबी नगरी जयपुर में स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) की महिलाएं अपने हुनर से दीये बना रही हैं। इन दियो से विदेशों में बसे भारतीय अपने घरों को इन दीपकों से रोशन कर रहे हैं, पिछले साल यहां के बने 2 लाख दीपकों को मॉरीशस, अमेरिका सहित अनेक देशों में भेजा जा चुका है, जो लगभग तीन महीने में बनकर तैयार हो गये थे। टोंक रोड सांगानेर में स्थित पिंजरापोल गौशाला से इन सब महिलाओं ने अपने हुनर को विदेशों तक पहुंचाया।
भारतीय जैविक किसान उत्पादन संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अतुल गुप्ता ने बताया कि इस वर्ष यूरोप के कई देशों में 20 लाख दीये भेजे जाएंगे। गौमाता की खासियत है कि गौमाता के दूध से भी अधिक मूल्यवान गोबर है। जिनके दीये, राखी,लाख की चूड़िया, लक्ष्मी-गणेशजी की मूर्ति आदि बनाए जा रहे हैं, 2 रुपए से लेकर 10 रुपए तक की कीमत से तैयार दीपकों में अलग-अलग डिजाइन होती है, यह दीपक जलकर हवा को शुद्ध रखते हैं। 12 महिलाएं यहां गाय का गोबर, गौ मूत्र, दूध, दही, घी, जटामासी, काली मिट्टी और ग्वारगम से रंग-बिरंगे दीपक बना रही है। इनमें न तो जलने की समस्या है और न ही ये अधिक तेल पीते हैं।
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हिंगोनिया गौ-पुनर्वास केन्द्र में श्रीकृष्ण बलराम गौ सेवा ट्रस्ट की ओर से गाय के गोबर से एक लाख इको फ्रेंडली दीपक बनाने का काम जोरों पर चल रहा है, कार्यक्रम समन्वयक रघुपति दास ने बताया कि प्रदूषण रहित दीपावली मनाने के लिए लोग गोबर से बने दीपकों से घरों को जगमग कर रहे हैं और इससे भारतीय संस्कृति की लौ प्रज्ज्वलित हो रही है, भक्ति वेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद ने गौमाता को पवित्र माता का दर्जा दिया है, गाय के सूखे गोबर को इकट्ठा करके एक किलो गोबर में 15 ग्राम मैदा, लकड़ी चूर्ण और 15 ग्राम गम ग्वार मिलाकर हाथ से ग्रंथते हैं। हाईड्रोलिक प्रणाली से उन्हें सुंदर आकर देकर एक मिनट में ग्यारह दीये तैयार करते हैं।
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