गोवर्धन पूजा, प्रकृति का सम्मान।

गोवर्धन पूजा, प्रकृति का सम्मान।

गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) के दिन, प्रकृति का सम्मान।

गोवर्धन पूजा (न्यूज़ अपना टोंक) – गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja), इस दिन मन्दिरों में अन्नकूट किया जाता है। यह एक प्रकार से सामूहिक भोज का आयोजन होता हैं जिसमें एक जगह बनाई गई रसोई से पूरा परिवार भोजन करता है। व इस दिन चावल, साबुत मूंग,बाजरा, कढ़ी, सभी सब्जियां एक जगह मिलाकर बनाई जाती हैं। अन्नकूट बनाकर प्रसाद के रूप में मंदिरों में बांटा जाता है। और सायंकाल को गोबर से गोवर्धन बनाकर उसकी पूजा की जाती है।

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वेदों में इस दिन इन्द्र, अग्नि, वरुण आदि देवताओं की पूजा का विधान होता  है। इसी दिन बलि पूजा और गोवर्धन पूजा भी होती हैं। इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर, धूप, चंदन, व फूल माला आदि से उनका पूजन किया जाता है। पशुओं को (गायों) को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है। और यह त्योहार ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारंभ हुई थी।

उस समय लोग इन्द्र भगवान की पूजा किया करते थे तथा उनके लिए छप्पन प्रकार के भोजन बनाकर, तरह-तरह की मिठाइयों व पकवान का भोग लगाया जाता था। महाराष्ट में यह दिन बालि प्रतिपदा व बालि पड़वा के रूप में मनाया जाता है। भगवान विष्णु के वामन जो कि एक अवतार हैं, उनकी राजा बालि पर विजय और बाद में बालि को पाताल लोक भेजने के कारण इस दिन उनका पुण्यस्मरण किया जाता है।

ऐसा कहा जाता हैं की भगवान वामन द्वारा दिए गए वरदान के कारण बालि इस दिन पाताल लोक से पृथ्वी लोक आये थे। इस दिन प्रात गाय के गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप में गोवर्धन बनाया जाता है। व अनेक स्थानों पर इसके मनुष्याकार बनाकर लताओं,पुष्पों आदि से सजाया जाता है। व इनकी नाभि के स्थान पर एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है।

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Surendra Jain

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